Friday, August 24, 2012

पोलीथीन के हानिकारक प्रभाव


शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जिसने पोलीथीन का नाम न सुना हो. हम पोलीथीन का उपयोग अपने दैनिक जीवन में करते ही रहते हैं. इससे बने लिफाफों में हम सारा सामान रखते हैं. ये हल्के, खूबसूरत व कम कीमत पर आसानी से मिल जाते हैं. परन्तु इन सब खूबियों के बावजूद ये बहुत हानिकारक होते हैं. पोलीथीन इथाईलीन गैस से बनने वाला ऐसा पोलीमर है जो बरसों तक नष्ट नहीं होता. ये मिट्टी में मिलकर उसकी उपजाऊ शक्ति को कम कर देते हैं. इसके बहुत से हानिकारक प्रभाव होते हैं जो निम्न-लिखित हैं.

•पोलीथीन को जलाने पर जहरीली गैसें निकलती हैं जिससे पर्यावरण दूषित होता है.

•पोलीथीन हमारे चारों ओर जल, वायु तथा मिट्टी में मिलकर इन्हें दूषित करती है.

•कूड़े-कचरे के ढेर में पोलीथीन कभी भी गलती या सड़ती नहीं है जिससे बरसों तक गन्दगी बनी रहती है.

•गऊएँ तथा अन्य आवारा पशु इसे चारे के साथ निगल जाते हैं जिससे इनकी पाचन नली अवरुद्ध हो सकती है तथा इनकी जान को भी खतरा हो सकता है.

•कुछ बच्चे पोलीथीन के लिफाफों के साथ खेलते हैं जिससे दम घुट सकता है और इनके स्वास्थ्य को हानि हो सकती है.

•इसके जलने से निकलने वाली कार्बनडाईओक्साइड गैस आकाश में ओजोन की परत को नष्ट करती हैं, जिससे सूर्य की परा-बैंगनी किरणें हमारी त्वचा को हानि पहुँचाती हैं.

•खाद्य पदार्थों में इसका उपयोग बार-बार करने से स्वास्थ्य के लिए गंभीर हो सकता है तथा हमें यथासंभव इससे बचना चाहिए.

•शहरों में पोलीथीन के लिफ़ाफ़े खुली तथा भूमिगत नालियों में पानी के बहाव को रोक देते हैं जिसे ठीक करने पर बहुत अधिक धन खर्च होता है तथा समय भी बर्बाद होता है.

•रंगीन पोलीथीन की थैलियों में भारी धातुओं के सूक्ष्म कण पाए जाते हैं जो एलर्जी करने के कारण बहुत हानिकारक हो सकते हैं.

इसके कई हानिकारक प्रभावों के कारण बहुत से राज्यों ने पोलीथीन के उपयोग पर प्रतिबन्ध लगा दिया है . आजकल पोलीथीन को अधिक से अधिक पुनः चक्रित करके इसे उपयोग में लिया जाता है ताकि इसके कचरे से प्रदूषण न फ़ैल सके.

आइये, हम सब यह प्रण लें कि पोलीथीन का उपयोग कम से कम करेंगे तथा उपयोग में लाए गए पोलीथीन को पुनः चक्रित करने में अधिक से अधिक अपना योगदान देंगे. ऐसा करने से न केवल हमारा पर्यावरण साफ़ रहेगा बल्कि लावारिस घूमने वाले पशु भी इसके दुष्प्रभावों से बचे रहेंगे.

Tuesday, August 21, 2012

मशीन मिल्किंग द्वारा दुग्ध-दोहन


आधुनिक मशीन मिल्किंग प्रणाली का सर्वप्रथम उपयोग डेनमार्क व नीदरर्लैंड में हुआ. आजकल यह प्रणाली दुनिया भर के हज़ारों डेयरी फार्मों द्वारा उपयोग में लाई जा रही है. मशीन मिल्किंग का एक छोटा प्रारूप भी है जिसे 10 से भी कम पशुओं के लिए सुगमता से उपयोग में लाया जा सकता है. इसके द्वारा गायों व भैंसों का दूध अधिक तीव्रता से निकाला जा सकता है. मशीन मिल्किंग में पशुओं की थन कोशिकाओं को कोई कष्ट नहीं होता जिससे दूध की गुणवत्ता तथा उत्पादन में वृद्धि होती है.

मशीन मिल्किंग की कार्य प्रणाली बहुत सरल है. यह पहले तो निर्वात द्वारा स्ट्रीक नलिका को खोलती है जिससे दूध थन में आ जाता है जहाँ से यह निकास नली में पहुँच जाता है. यह मशीन थन मांसपेशियों की अच्छी तरह मालिश भी करती है जिससे थनों में रक्त-प्रवाह सामान्य बना रहता है. मशीन मिल्किंग द्वारा दूध निकालते हुए गाय को वैसा ही अनुभव होता है जैसाकि बछड़े को दूध पिलाते समय होता है. मशीन मिल्किंग द्वारा दूध की उत्पादन लागत में काफी कमी तो आती ही है, साथ साथ समय की भी भारी बचत होती है. इसकी सहायता से पूर्ण दुग्ध-दोहन संभव है जबकि परम्परागत दोहन पद्धति में दूध की कुछ मात्रा अधिशेष रह जाती है. मशीन द्वारा लगभग 1.5 से 2.0 लीटर तक दूध प्रति मिनट दुहा जा सकता है. इसमें न केवल ऊर्जा की बचत होती है बल्कि स्वच्छ दुग्ध दोहन द्वारा उच्च गुणवत्ता का दूध मिलता है.

गाय तथा भैंस के थनों के आकार एवं संरचना में अंतर होता है, इसलिए गाय का दूध दुहने वाली मशीन में आवश्यक परिवर्तन करके इन्हें भैसों का दूध निकालने हेतु उपयोग में लाया जा सकता है. भैसों के दुग्ध दोहन हेतु अपेक्षाकृत भारी क्लस्टर, अधिक दाब वाला वायु निर्वात एवं तीव्र पल्स दर की आवश्यकता होती है. क्लस्टर का बोझ सभी थनों पर बराबर पड़ना चाहिए. सामान्यतः गाय एवं भैंस का दूध निकालने के लिए एक ही मशीन का उपयोग किया जाता है जिसमें वायु निर्वात दाब लगभग एक जैसा ही होता है परन्तु भैंसों के लिए पल्स दर अधिक होती है. मशीन मिल्किंग का समुचित लाभ उठाने के लिए इसका उपयोग सावधानी से किया जाना चाहिए. दूध निकालने वाला ग्वाला तथा भैंस दोनों का मशीन से परिचित होना आवश्यक है. यदि भैंसें मशीन के शोर से डरती हैं अथवा कोई कष्ट अनुभव करें तो वे दूध चढ़ा लेंगी जिससे न केवल डेयरी या किसान को हानि हो सकती है अपितु मशीन मिल्किंग प्रणाली से विश्वास भी उठ सकता है.

नव-निर्मित डेयरी फ़ार्म में मशीन मिल्किंग को धीरे-धीरे उपयोग में लाना चाहिए ताकि भैंसें एवं उनको दुहने वाले व्यक्ति इससे भली-भाँति परिचित हो जाएँ. किसी भी फ़ार्म पर मशीन मिल्किंग आरम्भ करने से पहले निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना अत्यंत आवश्यक है.

• दुग्ध-दोहन करने वाले व्यक्ति को मशीन मिल्किंग का प्रशिक्षण इसकी निर्माता कंपनी द्वारा दिया जाना चाहिए ताकि उसे मशीन चलाने के साथ साथ इसकी साफ़-सफाई एवं रख-रखाव संबंधी पूर्ण जानकारी मिल सके.

• सबसे पहले प्रथम ब्यांत की भैंसों का दूध मशीन द्वारा निकालना चाहिए क्योंकि इन्हें हाथ से दूध निकलवाने की आदत नहीं होती. ऐसी भैंसों के थन, आकार एवं प्रकार में लगभग एक जैसे होते हैं तथा अधिक उम्र की अन्य भैंसों के विपरीत इनकी थन-कोशिकाएं भी स्वस्थ होती हैं.

• सर्वप्रथम दूध दुहने के समय शांत रहने वाली भैसों को ही मशीन मिल्किंग हेतु प्रेरित करना चाहिए. प्रायः जिन भैसों को हाथ द्वारा दुहने में कठिनाई होती हो, वे मशीन मिल्किंग के लिए भी अनुपयुक्त होती हैं.

• दूसरे एवं इसके बाद होने वाले ब्यांत की भैंसों को हाथ से दुहते समय, मशीन मिल्किंग पम्प चलाते हुए क्लस्टर को समीप रखना चाहिए ताकि भैंस को इसके शोर की आदत पड़ जाए. भैंस को इस प्रकार मशीन का प्रशिक्षण देते समय बाँध कर रखना चाहिए ताकि वह शोर से अनियंत्रित न हो सके.

• मशीन को भैंसों के निकट ही रखना चाहिए ताकि वे न केवल इन्हें देख व अनुभव कर सकें बल्कि इससे उत्पन्न होने वाले शोर से भी परिचित हो सकें.

• मशीन द्वारा दूध निकालते समय यदि भैंस असहज अनुभव करे तो पुचकारते हुए उसके शरीर पर हाथ फेरना चाहिए ताकि वह सामान्य ढंग से दूध निकलवा सके.

उपर्युक्त बातों का ध्यान रखते हुए भैसों को शीघ्रता से मशीन द्वारा दुग्ध-दोहन हेतु प्रेरित किया जा सकता है. फिर भी कई भैंसें अत्यधिक संवेदनशील एवं तनाव-ग्रस्त होने के कारण मशीन मिल्किंग में पूर्ण सहयोग नहीं कर पाती. ऐसी भैंसों को परम्परागत ढंग से हाथ द्वारा दुहना ही उचित रहता है. मशीन मिल्किंग प्रणाली को अपनाने के लिए सर्वश्रेष्ठ प्रबंधन तथा सकारात्मक सोच की आवश्यकता होती है. इसके द्वारा स्वच्छ दुग्ध उत्पादन सुनिश्चित होता है. इसकी सहायता से डेयरी किसान अपनी कार्यकुशलता में वृद्धि ला सकते हैं, जिससे दूध की उत्पादन लागत में काफी कमी लाई जा सकती है.

यदि दिन में दो बार की अपेक्षा तीन बार दूध निकाला जाए तो पूर्ण दुग्ध-काल में 20% तक अधिक दूध प्राप्त हो सकता है. स्वच्छ दूध स्वास्थ्य के लिए उत्तम होता है तथा बाजार में इसके अच्छे भाव भी मिलते हैं. इस प्रकार निकाले गए दूध में कायिक कोशिकाओं तथा जीवाणुओं की संख्या काफी कम होती है जो इसके अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप होती है. दूध में किसी प्रकार की कोई बाहरी अशुद्धि जैसे धूल, तिनके, बाल, गोबर अथवा मूत्र मिलने की कोई संभावना नहीं रहती. इस प्रक्रिया में ग्वाले के खाँसने व छींकने से फैलने वाले प्रदूषण की संभावना भी नहीं रहती. आजकल मिल्किंग मशीने कई माडलों में उपलब्ध हैं जैसे एक बाल्टी वाली साधारण मशीन अथवा बड़े डेयरी फ़ार्म हेतु अचल मशीन. सुगमता से उपलब्ध होने के कारण इन्हें आजकल स्थानीय बाजार से अत्यंत स्पर्धात्मक दरों पर खरीदा जा सकता है.