Saturday, March 23, 2013

डेयरी फार्मिंग में कार्बन फुट-प्रिंट नियंत्रण




संसार भर में कृषि सम्बन्धी गतिविधियों के कारण लगभग 16% ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन होता है इसका 10 % उत्सर्जन केवल डेयरी पशुओं के कारण होता है. एक गाय लगभग 150-400 लीटर तक मीथेन पैदा कर सकती है. मानवीय कारणों से होने वाले समस्त मीथेन उत्सर्जन का एक चौथाई भाग पशुओं से होता है जो वैश्विक ताप वृद्धि का एक बड़ा कारक बताया जाता है. अंतर्राष्ट्रीय खाद्य एवं कृषि संगठन के अनुमान के अनुसार यदि रुमान्थ्री पशुओं की संख्या इसी प्रकार बढ़ती रही तो वर्ष 2030 तक मीथेन का उत्पादन 60% तक बढ़ जाएगा. वैश्विक मीथेन गैस उत्सर्जन का लगभग एक तिहाई भाग विकासशील देशों के रुमान्थ्री पशुओं के कारण होता है. इस बढते हुए प्रदूषण के कारण पर्यावरणविद् अक्सर ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन कम करने की बात करते हैं.
ग्रीन हाउस गैसें जैसे कार्बनडाइऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड तथा जल वाष्प सौर ऊर्जा को अवशोषित कर लेते हैं तथा वैश्विक तापवृद्धि का कारण बनते हैं.  इन गैसों के उत्सर्जन से कार्बन फुटप्रिंट का आकार बढ़ता है जो हमारे पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है.  मीथेन, कार्बनडाइऑक्साइड गैस की तुलना में 21 गुणा अधिक सौर ऊष्मा अवशोषित कर सकती है जबकि नाइट्रस ऑक्साइड 310 गुणा गर्मी अवशोषित कर सकती है. अतः इससे स्पष्ट है कि मीथेन का सूचकांक 21 तथा नाइट्रस ऑक्साइड का वैश्विक ताप वृद्धि सूचकांक 310 है.  ऊष्मा अवशोषित करने वाली ये गैसें ग्रीन हाउस की उन कांच की खिड़कियों की तरह हैं जो पृथ्वी को अधिक तापमान से बचाती हैं. इन गैसों का अधिकाँश उत्सर्जन खनिज तेलों के जलने से भी होता है. पशुओं के रुमेन से निकलने वाली मीथेन तथा मल-मूत्र से उत्पन्न नाइट्रस ऑक्साइड मुख्यतः डेयरी फार्मों में ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन के लिए उत्तरदायी हैं. इन गैसों के अत्याधिक उत्सर्जन से पृथ्वी पर कार्बन फुटप्रिंट बढ़ने लगता है जिसे डेयरी फार्म में उचित प्रबंधन प्रणाली द्वारा नियंत्रित कर सकते हैं. इसके लिए डेयरी किसानों को सभी क्षेत्रों जैसे चारा एवं दुग्ध उत्पादन में अपनी डेयरी की कार्य कुशलता बढ़ाने की आवश्यकता होगी. मीथेन गैस भी ऊर्जा का ही एक रूप है. इसे गंवाने का सीधा अर्थ है कि उत्पादन में हानि.
यदि आहार पचनीयता एवं ऊर्जा व प्रोटीन में संतुलन बना रहे तो इस गैस की क्षति को काफी कम किया जा सकता है. गायों को बेहतर गुणवत्ता का घास खिलाने से मीथेन की पैदावार तो अधिक होती है परन्तु प्रति लीटर दुग्ध  उत्पादन हेतु इस गैस का उत्सर्जन कम हो जाता है. यदि पोषण में प्रोटीन की मात्रा कुछ कम व कार्बोहाइड्रेट अधिक दिया जाए तो रुमेन में मीथेन पैदा करने वाले बैक्टीरिया कम पनपते हैं तथा दूध की पैदावार बढ़ जाती है.
      खेतों में नाइट्रोजन का मुख्य स्रोत पशुओं का मल-मूत्र, रासायनिक खाद एवं गले-सड़े वनस्पति के अवशेष हैं, जिन्हें फलीदार पौधों की जड़ों में पाए जाने वाले नाइट्रोजनीकरण बैक्टीरिया नाइट्रेट में बदल देते हैं ताकि पौधों को नाइट्रोजन की पर्याप्त मात्रा मिलती रहे. यदि भूमिगत नाइट्रोजन का नाइट्रेट के रूप में स्थिरीकरण न हो तो यह नाइट्रस ऑक्साइड व नाइट्रोजन बन कर वायुमंडल में चली जाती है तथा वैश्विक ताप-वृद्धि का कारण बनती है. डेयरी फार्मों में नाइट्रस ऑक्साइड का मुख्य स्रोत पशुओं का मलमूत्र है, परन्तु रासायनिक खाद व फलीदार फसलों से भी इसका अधिक उत्सर्जन होता है.  इससे स्पष्ट है कि हमें भूमिगत नाइट्रोजन को अनावश्यक बढ़ने से रोकना होगा.  मिट्टी में नाइट्रोजन-युक्त खाद मिलाने से पहले यह अवश्य सोचें कि खाद का मूल्य कितना है तथा इससे पैदा होने वाली फसल अपना खर्च निकाल कर किसान को उचित लाभ दे सकती है अथवा नहीं. नाइट्रोजन खाद मिट्टी में तभी मिलाएं जब उसमें कुछ बोया गया है तथा उग भी रहा है ताकि पौधे इस नाइट्रोजन को उत्पादकता में परिवर्तित कर सकें.
पशुओं को गीली मिट्टी में अधिक समय तक न रखें क्योंकि ऐसा करने से इसमें पशुओं का मलमूत्र अधिक मात्रा में जमा हो जाता है. कीचड़ में ऑक्सीजन की कमी के कारण अधिक मात्रा में नाइट्रस ऑक्साइड बनती है तथा यह गैस वायुमंडल में जाकर तापवृद्धि का कारण बनती है. खेतों में यथा-सम्भव नाइट्रोजन युक्त खाद का उचित उपयोग करना चाहिए ताकि इसकी अनावश्यक बर्बादी को रोका जा सके. गर्मियों के मौसम में अगर खेतों में पानी खडा हो तो इससे भी नाइट्रोजन की क्षति अधिक होती है. इसी प्रकार वर्षा से पूर्व भी नाइट्रोजन-युक्त खाद के प्रयोग से बचना चाहिए. यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि खाद नाइट्रेट के रूप में न हो बल्कि  यूरिया अथवा डाइ-अमोनियम  फोंस्फेट के रूप में होनी चाहिए ताकि नाइट्रोजन की क्षति को यथा सम्भव नियंत्रित किया जा सके.
      हमारे देश में दूध न देने के कारण आवारा पशुओं की संख्या बहुत अधिक है तथा ये पशु चारे के सीमित संसाधनों पर ही निर्भर होते हैं. यदि चारे को केवल दुग्ध उत्पादन करने वाले पशुओं को खिलाया जाए तो प्रति पशु पैदावार बढ़ेगी तथा चारे के कारण बनने वाली ग्रीन हाउस गैसों में भी कमी आएगी. ये आवारा पशु कृषि भूमि पर भी अनावश्यक दबाव बनाते हैं जिससे खेती की पैदावार पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है. यदि कृषि एवं डेयरी का व्यवसाय संगठित क्षेत्र में हो तो संसाधनों का युक्ति-संगत उपयोग किया जा सकता है. ऐसा करने से जो बिजली व पानी की जो बचत होगी, उससे हम न केवल अतिरिक्त घरों में रोशनी कर पाएंगे बल्कि दूर-दराज स्थित घरों में पीने का पानी भी उपलब्ध करवा सकते हैं. डेयरी पशु पालन के क्षेत्र में उन्नत प्रौद्योगिकी अपना कर कार्बन फुट-प्रिंट को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है.
काश ऐसा होता कि बायो-तकनीकी द्वारा विकसित पशु हमारे पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचा पाएं अथवा हम ऐसी फसलें उगाने लगें जिनसे इन गैसों का उत्सर्जन न्यूनतम हो. यदि प्रति पशु दूध की पैदावार बढाई जाए तो इस उत्सर्जन को सीमित अवश्य किया जा सकता है. पशुओं से होने वाले गैस उत्सर्जन के अतिरिक्त गोबर खाद से भी नाइट्रोजन व कार्बनडाइऑक्साइड गैसों का उत्सर्जन होता है. जैसे दूध की पैदावार बढ़ रही है वैसे ही इसकी माँग भी बढ़ती जा रही है. प्रति पशु दूध की पैदावार बढ़ाने के लिए हमें कम संख्या में पशुओं की आवश्यकता होगी तथा इनकी चारा आवश्यकता भी कम होगी. हालांकि वर्तमान में ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कम करने हेतु कोई क़ानून हमारे देश में लागू नहीं हैं फिर भी भविष्य में ऐसी सोच अवश्य विकसित हो सकती है. कई देशों में उन्नत डेयरी प्रबंधन प्रणाली अपना कर कार्बन फुटप्रिंट घटाने पर उचित प्रोत्साहन राशि भी प्रदान की जाती है.  
आजकल कुछ ऐसे पदार्थों पर भी अनुसंधान हो रहा है, जिन्हें भविष्य में पशुओं की खुराक में मिला कर देने से ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कम किया जा सकेगा. मोनेंसिन तथा वर्जीनियामाइसिन कुछ ऐसे एंटी-बायोटिक हैं जिन्हें पशुओं की खुराक में मिलाकर देने से मीथेन उत्पन्न करने वाले बैक्टीरिया कम होते हैं. हालांकि कुछ समय बाद इन बैक्टीरिया की संख्या फिर से बढ़ने लगती है.  अतः इस दिशा में अभी बहुत कुछ किया जाना बाक़ी है.  यदि पशुओं के आहार की पाच्कता बेहतर हो तो मीथेन उत्सर्जन कम होता है. पशुओं को विभिन्न प्रकार के आहार एवं संपूरक खिलाकर अध्ययन करना होगा कि मीथेनोजन द्वारा मीथेन के उत्पादन को किस प्रकार नियंत्रित किया जा सकता है अथवा इन्हें प्रभावहीन करने के कौन कौन से तरीके दीर्घावधि में लाभकारी हो सकते हैं. पशुओं में कम रेशा-युक्त आहार की तुलना में अधिक मात्रा में रेशा-युक्त आहार देरी से पचता है तथा अधिक मीथेन गैस पैदा करने में सक्षम होता है. मीथेन गैस उत्सर्जन कम करने के किए यह आवश्यक है कि चारा रुमेन से निकल कर यथाशीघ्र एबोमेसम तथा छोटी आंत की ओर बढ़ जाए. प्रजनन द्वारा ऐसे पशु विकसित किए जा सकते हैं जो अधिक दूध उत्पादित कर सकें ताकि प्रति लीटर दूध की तुलना में अपेक्षा कृत कम मीथेन का उत्सर्जन हो.  डेयरी फ़ार्म में छप्पर एवं छाया हेतु हरे-भरे वृक्ष भी लगाने चाहिएं जो ग्रीन हाउस गैसों को अवशोषित करके हमें बेहतर पर्यावरण प्रदान करते हैं.