Tuesday, January 5, 2016

आवश्यक सूचना

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Sunday, January 3, 2016

पशु परिवहन कैसे करें?

आजकल पशुओं को विभिन्न व्यावसायिक कारणों से एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना पड़ता है. इन परिस्थितियों में पशुओं के चोटिल एवं तनावग्रस्त होने की संभावना सर्वाधिक होती है. पशुओं को अधिकतर ऐसे ट्रकों में लाद कर ले जाया जाता है, जिसमें खड़े रहने के लिए पर्याप्त जगह भी नहीं होती. इन्हें लंबे समय तक बिना पानी या चारे के यात्रा हेतु मजबूर किया जाता है, जिससे कई पशु रास्ते में ही दम तोड़ देते हैं. जो पशु अपने गंतव्य स्थल पर पहुँचते हैं, वे शारीरिक व मानसिक रूप से अत्याधिक तनाव-ग्रस्त हो जाते है, फलस्वरुप इन्हें सामान्य अवस्था में लाने के लिए कई दिन लग जाते हैं. अतः परिवहन के दौरान पशु कल्याण पर समुचित ध्यान देने की आवश्यकता है.
पशु परिवहन में जोखिम
लगातार कई घंटे तक सफर करने से पशुओं का शारीरिक भार दस प्रतिशत तक कम हो जाता है. पशु परिवहन के दौरान इनकी रोग-प्रतिरोध क्षमता भी कम हो जाती है तथा ये जल्द ही रोगों से ग्रस्त होने लगते हैं. ऐसे पशुओं में मृत्यु दर भी अधिक होती है. एक अनुसंधान रिपोर्ट के अनुसार बछड़ों का रोग-प्रतिरोध तंत्र पूर्णतया विकसित नहीं होता है. ये लंबे सफर के दौरान अपना शारीरिक तापमान नियंत्रित नहीं रख पाते तथा ताप- एवं शीत-घात सहने में असमर्थ होते हैं. परिणाम-स्वरुप ये बछड़े परिवहन के बाद बीमार हो जाते हैं तथा इनमें मृत्यु दर बढ़ने की आशंका अधिक होती है.
आजकल पशुओं को भी मनुष्य की भांति तनाव-रहित एवं कल्याणकारी वातावरण में रहने का अधिकार है ताकि ये अधिक बेहतर ढंग से मानव-जाति के काम सकें. पशु कल्याण केवल कानूनी दृष्टि से आवश्यक है, परन्तु इसके कई मानवीय पक्ष भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं. पशुओं को परिवहन के लिए ले जाते समय निम्न-लिखित बातों पर ध्यान देना अत्यंत आवश्यक है-
  • पशुओं के मालिकों एवं प्रबंधकों का यह दायित्व है कि जिन पशुओं को परिवहन द्वारा अन्यत्र ले जाना है, उनका स्वास्थ्य ठीक हो तथा वे यात्रा करने के लिए पूर्णतया सक्षम हों. 
  • पशुओं के परिवहन हेतु एक उपयुक्त वाहन की आवश्यकता होती है ताकि सफर के दौरान पशुओं को कोई परेशानी या तनाव न हो. 
  • परिवहन हेतु प्रयुक्त वाहन में प्रत्येक पशु हेतु न्यूनतम स्थान की उपलब्धता सुनिश्चित करना आवश्यक है. इस सम्बन्ध में पशु चिकित्सक से परामर्श अवश्य ही कर लेना चाहिए. 
  • पशु-परिवहन से पूर्व मौसम अनुकूल होना चाहिए ताकि यात्रा के दौरान इन्हें स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों का सामना न करना पड़े. 
  • यात्रा के दौरान पशुओं की देख-रेख के लिए एक प्रशिक्षित व्यक्ति का साथ होना अनिवार्य है. यदि कोई और व्यक्ति उपलब्ध न हो तो यह गाड़ी के चालक का दायित्व है कि वह समय-समय पर पशुओं पर नज़र बनाए रखे. 
  • यात्रा के दौरान निश्चित समय पर गाड़ी रोक कर पशुओं को आराम देना आवश्यक है. आपात परिस्थितियों में चिकित्सकीय उपकरण एवं परामर्श हेतु पशु-चिकित्सक उपलब्ध होना चाहिए. 
  • पशुओं के खरीदार व विक्रेता दोनों का ही यह कर्तव्य है कि पशुओं के लदान व इन्हें गंतव्य स्थल पर उतारने के लिए समुचित व्यवस्था उपलब्ध हो. 
  • पशुओं को परिवहन हेतु वाहन पर चढ़ाते व उतारते समय इनके साथ मानवीय व्यवहार होना चाहिए. पशुओं के लिए लंबे सफर के दौरान चारे व पानी की भी समुचित व्यवस्था की जानी चाहिए. 
  • रोगी पशुओं का परिवहन अत्यंत सावधानी से होना चाहिए ताकि किसी बीमारी का फैलाव न हो. परिवहन से पहले व बाद में वाहन को कीटाणु-नाशक घोल द्वारा साफ़ किया जाना चाहिए.
·         यात्रा की अधिकतम समयावधि पशुओं की आयु एवं दैहिक अवस्था पर निर्भर करती है. अधिक आयु वाले तथा ग्याभिन पशु अधिक समय तक यात्रा नहीं कर सकते. परिवहन के अंतर्गत होने वाली घटनाओं का लिखित उल्लेख लोग-बुक में किया जाना आवश्यक होता है.
·         पशुओं के परिवहन से सम्बंधित सभी पक्षों के लिए यह अनिवार्य है कि इसके लिए निर्धारित सभी नियमों एवं मापदंडों का अनुपालन कड़ाई से किया जाए ताकि यात्रा के दौरान उच्च-स्तरीय पशु-कल्याण व्यवस्था को सुनिश्चित किया जा सके.
परिवहन हेतु वाहन
परिवहन हेतु प्रयुक्त होने वाला वाहन पशुओं के आकार, प्रकार एवं भार पर निर्भर करता है. इस वाहन के अंदर की ओर कोई भी तीखी लोहे की कीलें या छडें नहीं होने चाहिएं क्योंकि इनसे पशुओं को शारीरिक आघात हो सकता है. वाहन को खराब मौसम से बचाने के लिए पर्याप्त छत की व्यवस्था होनी चाहिए. वाहन की बनावट पशुओं के लिए हवादार व आरामदेह होनी चाहिए ताकि धूप के समय इसका तापमान अधिक न होने पाए. वाहन में यथा-सम्भव कम से कम कोने या गड्ढे हों ताकि सफर के दौरान वाहन में मल-मूत्र जमा न होने पाए तथा इसकी सफाई आसानी से हो सके. ज्ञातव्य है कि साफ़-सुथरे पशु-वाहनों में रोगों का संक्रमण रोकना भी सम्भव हो सकता है. ये वाहन यांत्रिक दृष्टि से मजबूत बनावट वाले होने चाहिएं. वाहन में मल-मूत्र की निकासी हेतु पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए ताकि पशुओं को गन्दगी से बचाया जा सके.  वाहन का फर्श चिकना नहीं होना चाहिए. यदि आवश्यक हो तो नीचे पुआल आदि बिछाई जा सकती है.  वाहन में पशुओं के लिए बैठने का स्थान, उनके बैठने या खड़े रहने की प्रवृत्ति से भी निर्धारित होता है. सामान्यतः सूअरों तथा ऊंटों को बिठा कर व गायों, भैंसों, और  घोड़ों को खड़ा करके एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जाता है. खड़ी अवस्था में ले जाए जाने वाले पशुओं को अपना संतुलन बनाए रखने के लिए वाहन में पर्याप्त स्थान उपलब्ध होना चाहिए. जब पशु खड़े हों तो उनका सर वाहन की छत से नहीं टकराना चाहिए. वाहन में पशुओं को इस प्रकार व्यवस्थित किया जाना चाहिए कि प्रत्येक पशु का निरीक्षण आसानी से किया जा सके. छोटे आकार के जंतुओं को क्रेट में ले जाने के कारण छत नीचे रहती है अतः इनका निरीक्षण कठिन होता है. ऐसे में इनके लिए लगातार लंबा सफर ठीक नहीं रहता. परिवहन के लिए पशुओं को ले जाते समय इनका बीमा करवाना भी ठीक रहता है. ऐसा करने से परिवहन के दौरान जोखिम का ख़तरा कम हो जाता है. यदि सफर सामान्य से अधिक लंबा हो तो इन्हें चारा व पानी दे कर ही परिवहन हेतु आगे ले जाना चाहिए.
एक जैसे पशु इकट्ठे ले जाएँ
एक ही ग्रुप में रहने वाले पशुओं को एक साथ परिवहन हेतु ले जाना चाहिए क्योंकि ये एक दूसरे के स्वभाव से परिचित होते हैं तथा इनमें एक प्रकार का सामाजिक सम्बन्ध भी स्थापित हो जाता है. आपस में लड़ने वाले पशुओं को कभी भी एक साथ न ले जाएँ. कम आयु के पशुओं को, अधिक आयु के पशुओं के साथ भी ले जाना ठीक नहीं होता. इसी तरह सींग वाले पशुओं के साथ, बिना सींग वाले पशुओं का परिवहन नहीं होना चाहिए. विभिन्न प्रजाति के पशुओं को एक साथ ले जाना भी हितकारी नहीं है क्योंकि इनके स्वाभाव एक दूसरे के विपरीत हो सकते हैं. जिन पशुओं को पूर्व में परिवहन का अनुभव होता है उन्हें अन्यत्र ले जाने में अपेक्षाकृत कम कठिनाई होती है. अस्वस्थ पशुओं का परिवहन नहीं होना चाहिए परन्तु यदि यह कार्य चिकित्सा हेतु किया जा रहा है तो स्वीकार्य होता है. अतः परिवहन हेतु पशुओं का चुनाव सावधानी-पूर्वक किया जाना चाहिए. अंधे, बीमार, कमज़ोर अथवा लंगड़ेपन जैसी व्याधियों से पीड़ित पशु परिवहन हेतु अनुपयुक्त होते हैं. शीघ्र ही ब
ब्याने वाले पशुओं को भी एक स्थान से दूसरे स्थान पर नहीं ले जाना चाहिए. इसी प्रकार जो पशु शारीरिक रूप से अत्यंत दुर्बल या बहुत मोटे हों, वे विपरीत वातावरणीय परिस्थितियों व लंबे सफर के तनाव को नहीं झेल सकते. अतः ऐसे पशुओं का परिवहन भी नहीं होना चाहिए. परिवहन के दौरान पशुओं के व्यवहार का समुचित ध्यान रखना चाहिए. क्योंकि जो कार्य एक प्रजाति के पशु के हित में हो वह दूसरी प्रजातियों के पशुओं के भी हित में हो, यह आवश्यक नहीं है. इसलिए पशुओं के परिवहन हेतु योजनाबद्ध ढंग से कार्य होना चाहिए.
परिवहन हेतु लदान
पशुओं को वाहन में चढाते समय उत्तेजित नहीं करना चाहिए. लदान का कार्य किसी प्रशिक्षित व्यक्ति की देख-रेख में ही संपन्न होना चाहिए. लदान के दौरान पशुओं से किसी प्रकार की मार-पीट नहीं होनी चाहिए अन्यथा उन्हें गहरी चोट लग सकती है. पशुओं को चढाने के लिए तैयार की गई ढलान व रास्ते इनके आकार एवं क्षमता के अनुकूल होने चाहिएं ताकि इन्हें चढ़ते समय कोई परेशानी न हो. वाहन में प्रकाश की पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए ताकि पशुओं को चढ़ते समय कोई डर न लगे. आवश्यकता से अधिक पशुओं का परिवहन करते समय उन्हें वाहन में ठूंसना नहीं चाहिए अन्यथा दम घुटने से इनकी मृत्यु भी हो सकती है. वाहन में लदान के समय किसी भी प्रकार का बल-प्रयोग अनुचित होता है. छोटे पशुओं जैसे बकरी आदि को उठा कर भी वाहन में चढाया जा सकता है परन्तु इन्हें पटकना नहीं चाहिए. लदान के बाद वाहन को अपेक्षाकृत कम गति पर ही चलाना चाहिए ताकि पशुओं को यात्रा के दौरान झटके आदि न लगें. एक दम ब्रेक अथवा गति देने से पशुओं को धक्का लगता है तथा ये चोटिल भी हो सकते हैं. अतः इस कार्य के लिए प्रशिक्षित वाहन चालक को ही कार्य पर लगाया जाना चाहिए. यात्रा के दौरान थोड़े-थोड़े अंतराल पर पशुओं को देखते रहना चाहिए. स्वस्थ पशुओं का परिवहन करते समय वाहन में किसी मृत पशु को नहीं ले जाना चाहिए. यात्रा के दौरान पशुओं की चारे व पानी की आवश्यकताओं की पूर्ति होती रहनी चाहिए. लंबे सफर के दौरान पशुओं को आराम करने का समय भी दिया जाना चाहिए क्योंकि ये लंबे सफर का तनाव झेलने में अक्षम होते हैं.
पशुओं को वाहन से कैसे उतारें?
गंतव्य स्थल तक पहुँचने तक पशु बहुत थक जाते हैं. इन पशुओं को सावधानीपूर्वक ही वाहन से उतारना चाहिए. किसी प्रकार की जल्दी पशुओं के लिए हानिकारक सिद्ध हो सकती है. ध्यातव्य है कि पशुओं को नीचे उतारते समय वाहन व प्लेटफार्म का स्तर एक जैसा हो. प्लेटफार्म की ढलान में किसी तरह की फिसलन नहीं होनी चाहिए. पशुओं को उतारते समय अनावश्यक शोर-गुल नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे पशुओं में खलबली मच सकती है. सफर के दौरान चोटिल हुए पशुओं को तुरंत ही चिकित्सक की सुविधा मिलनी चाहिए. ऐसे पशुओं को अन्य पशुओं से अलग रखा जाना चाहिए. पशु परिवहन के दौरान पशुओं में रोग संक्रमण होने की संभावना सर्वाधिक होती है अतः ऐसे वाहनों को प्रयोग के बाद कीटाणुनाशक घोल द्वारा साफ़ करना चाहिए ताकि अन्य पशुओं का परिवहन करते समय कोई रोग न फैलने पाए. वाहन से उतारने के बाद पशुओं की चिकित्सकीय जांच आवश्यक होती है ताकि प्रभावित पशुओं का समय पर इलाज किया जा सके. पशुओं को पर्याप्त चारा व पेय जल उपलब्ध करवाना चाहिए ताकि ये धीरे-धीरे अपने सामान्य जीवन की ओर लौट सकें. यूरोप में पशु परिवहन हेतु बनाए गए नियमों का पालन बड़ी कड़ाई से किया जाता है. यहाँ मांस के उत्पादन में प्रयुक्त छोटे जानवरों जैसे सूअर, बकरी व कम आयु वाले पशुओं के परिवहन हेतु अधिकतम समय सीमा छः घंटे ही निर्धारित की गई है जबकि गायों के लिए यह अवधि बारह घंटे तक हो सकती है.

परिवहन के दौरान पशुओं के साथ मानवीय व्यवहार न केवल विधि-संगत है अपितु पशु-कल्याण सुनिश्चित करने से इनकी उत्पादकता एवं कार्यकुशलता में भी सुधार होता है. हालांकि भारत में परिवहन के दौरान पशु कल्याण का कोई विशेष ध्यान नहीं रखा जाता परन्तु यूरोप में इनके परिवहन के लिए दूरी एवं समय दोनों को ही यथा-सम्भव कम रखा जाता है. अतः परिवहन के समय पशु कल्याण सम्बन्धी व्यवस्था करने से डेयरी किसानों एवं पशु-पालकों को पूरा लाभ मिलता है.