Tuesday, September 18, 2012

गर्म मौसम में डेयरी पशु प्रबन्धन

भारतवर्ष में दूध की बढ़ती हुई मांग को देखते हुए इसके अधिक उत्पादन हेतु नवीनतम तकनीकियों का विकास करना आवश्यक है. डेयरी गायों में दूध की गुणवत्ता एवं इसका उत्पादन अधिक ताप से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता. प्राइवेट डेयरियों में आजकल संकर नस्ल की गाय अधिक दुग्ध-उत्पादन हेतु लोकप्रिय हो रही हैं. इन गायों को स्वदेशी नस्लों की तुलना में ताप जनित तनाव की संभावना भी अधिक होती है. गर्म मौसम कई विभिन्न कारकों जैसे वायु का अधिक तापमान, वायु की गति, नमी एवं ऊष्मा विचलन दर पर निर्भर करता है. डेयरी पशुओं की उचित देखभाल हेतु वृक्षों की छाया, विद्युत पखों, कूलरों तथा रात के समय चरागाह में भेजने जैसी अनेक विधियाँ अपनाई जाती हैं. उष्मीय तनाव से पशु कम मात्रा में शुष्क पदार्थ ग्रहण करते हैं जबकि उन्हें अधिक ऊर्जा एवं प्रोटीन की आवश्यकता होती है. अतः ऐसी परिस्थितियों में पशुओं को अधिक ऊर्जा एवं प्रोटीन-युक्त आहार उपलब्ध कराए जाने की नितांत आवश्यकता है ताकि इनकी उच्च-उत्पादन क्षमता पर गर्मी का कोई प्रभाव न पड़े.

गर्म मौसम प्रत्यक्ष एवं परोक्ष दोनों प्रकार से पशुओं की उत्पादन क्षमता को प्रभावित करता है. अधिकतम आनुवंशिक क्षमता हेतु पर्यावरणीय परिस्थितियों के साथ-साथ पशुओं की खुराक में भी परिवर्तन लाना अतिआवश्यक है. दूध देने वाली संकर नस्ल की गायों के लिए लगभग 25 डिग्री सेल्सियस का तापमान आरामदेह होता है परन्तु इससे अधिक गर्मी होने पर इनकी दुग्ध-उत्पादन क्षमता काफी कम हो जाती है. गर्म मौसम में शारीरिक तापमान बढ़ जाता है जिससे दुग्ध-उत्पादन क्षमता, उर्वरता तथा शारीरिक वृद्धि की दर में कमी आ जाती है. इनके शरीर का तापमान, ऊष्मा लाभ एवं हानि पर निर्भर करता है. उच्च तापमान एवं नमी-युक्त वातावरण में ऊष्मा हानि कम हो जाती है जो दुग्ध-उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है. अधिक ऊर्जा-युक्त आहार लेने से शरीर से उत्पन्न होने वाली ऊष्मा तथा दुग्ध उत्पादन दोनों ही बढ़ जाते हैं. अतः अधिक दूध देने वाली गायों में ऊष्मा उत्पादन बढ़ने से गर्म मौसम का विपरीत प्रभाव भी अपेक्षकृत अधिक होता है. गर्म मौसम में पशुओं का तापमान नियंत्रित रखने के लिए आम-तौर पर निम्न-लिखित विधियाँ अपनाई जाती हैं.

• पशुओं के शेड का तापमान कम रखने के लिए इनकी बनावट में सुधार किया जाता है ताकि धूप से अधिकतम बचाव हो सके.
• पशुओं पर फव्वारे द्वारा पानी डाल कर पंखे चलाए जाते हैं ताकि उनके शरीर को ठंडा रखा जा सके.
• भोज्य ऊर्जा उपयोगिता की क्षमता बढ़ा कर खाने के समय उत्पन्न होने वाली ऊष्मा में कमी लाई जा सकती है.

गर्म मौसम में विभिन्न कारकों से पशुओं की उत्पादन क्षमता प्रभावित होती है.

वायु-ताप एवं नमी: वायु नमी के कारण त्वचा तथा श्वाश नली से वाष्पोत्सर्जन द्वारा होने वाली ऊष्मा-हानि पर प्रभाव पड़ता है. अतः अधिक तापमान पर नमी, दुधारू पशुओं की उत्पादन क्षमता को काफी हद तक कम कर देती है. गर्मी एवं नमी में पशु अधिक समय तक खड़े रहते हैं ताकि वाष्पोत्सर्जन द्वारा अपने शरीर से अधिकाधिक ऊष्मा वायु में छोड़ सकें.

ऊष्मा विकिरण: सूर्य एवं पशुओं के आसपास मिलने वाले ऊष्मा विकिरणों के कारण ऊष्मा हानि प्रभावित होती है. गर्मियों के मौसम में पशुओं के शेड से अत्यधिक ऊष्मा विकिरण निकलते हैं जिससे इनके दुग्ध उत्पादन में कमी आ जाती है. धूप में पशुओं की त्वचा ऊष्मा सोख लेती है जिससे इनका शारीरिक तापमान बढ़ जाता है. गर्मी से मुक्ति पाने के लिए पशु तीव्रता से सांस लेते हैं. पशु कम मात्रा में शुष्क पदार्थ ग्रहण करते हैं तथा इनके ऊष्मा उत्पादन में भी कमी आ जाती है. इस प्रकार गर्मी झेलने वाले पशुओं में दुग्ध उत्पादन लगभग बीस प्रतिशत तक कम हो सकता है.

हवाओं का चलना: हवाओं के कारण पशुओं के शरीर से होने वाली उष्मा हानि संवहन तथा वाष्पोत्सर्जन द्वारा होती है. कम तापमान पर हवाओं के चलने से दुग्ध उत्पादकता प्रभावित नहीं होती परन्तु अधिक तापमान पर हवा चलने से पशुओं को लाभ होता है. गर्मियों के मौसम में पशुओं द्वारा उत्पन्न की गई ऊष्मा ताप-जनित तनाव का मुख्य कारण होती है. जब ताप नमी सूचकाँक 72 (सामान्य नमी पर 21 डिग्री से. तापमान) से अधिक होता है तो दुग्ध उत्पादन घटना शुरू हो जाता है. ताप नमी सूचकाँक की प्रत्येक इकाई के बढ़ने पर दूध की मात्रा लगभग 250 ग्राम प्रतिदिन तक कम हो जाती है.

गर्म मौसम में पशुओं की उत्पादक क्षमता पर प्रभाव: ताप-जनित तनाव के कारण डेयरी पशुओं की गर्भाधारण दर में 5 % या इससे अधिक की कमी आ सकती है. गर्म मौसम में गाएं मद्काल में न होने के कारण गर्भाधान हेतु उपलब्ध नहीं होती हैं. यदि पशुओं का दैहिक अवस्था सूचकांक 2.25 से कम हो तो इनमें समय पर डिम्ब-स्खलन नहीं होता है तथा ऎसी गायों में प्रथम गर्भाधान पर ग्याभिन होने की संभावना 40 % तक कम हो जाती है. डेयरी पशुओं की जनन क्षमता ऊर्जा युक्त आहार की कमी, आवश्यकता से अधिक मात्रा में प्रोटीन खिलाने एवं चारे में जहरीले तत्व व रोगाणु होने से प्रभावित होती है. अधिक दूध देने वाली संकर गायों में अपेक्षाकृत कम तापमान पर ही श्वास दर बढ़ने लगती है जबकि कम दूध देने वाले पशुओं में अधिक तापमान सहने की क्षमता पाई जाती है क्योंकि अधिक दुग्ध-उत्पादन करने वाली गायों में चयापचय दर एवं ऊष्मा उत्पादन भी अधिक होता है. इसी प्रकार शुष्क पदार्थों की कम खपत भी दुग्ध-उत्पादन में कमी लाती है.

यदि सावधानीपूर्वक डेयरी पशुपालन प्रबन्धन किया जाए तो अधिक दूध देने वाले पशुओं को उच्चतम दुग्ध-उत्पादन स्तर पर भी गर्मी के कारण होने वाले तनाव से निजात दिलाई जा सकती है. विशेष प्रकार के फव्वारे तथा पंखे चलाकर पशुओं को गर्मी से बचाया जा सकता है.

धूप से सीधे बचाव के लिए साधारण शेड का प्रयोग किया जा सकता है. शेड के आसपास पेड़-पौधे लगा कर वातावरण को और भी अधिक ठंडा एवं प्रभावशाली बनाया जा सकता है. शेड के कारण डेयरी पशुओं का शारीरिक तापमान एवं श्वसन दर सामान्य बनी रहती है. इसी तरह कम तापमान पर तेजी से चलने वाली हवा के कारण पशुओं के शरीर से ऊष्मा अधिक तीव्रता से निकलती है. इससे न केवल सामान्य ताप एवं श्वसन दर बनी रहती है अपितु पशुओं के भार में वृद्धि के साथ साथ उच्च गुणवत्ता-युक्त अधिक दूध प्राप्त होता है. परन्तु अधिक तापमान युक्त हवा से पशुओं की त्वचा का तापमान अधिक हो जाता है तथा ताप-जनित तनाव के कारण इनकी उत्पादकता में भी कमी आ जाती है. यदि पशुओं के सिर एवं गर्दन को ठंडा रखा जाए तो ये अधिक चारा ग्रहण करते हैं जिससे दुग्ध-उत्पादन बढ़ जाता है. यदि पशुओं को रात के समय चरने दिया जाए तो इन्हें सूर्य की गर्मी से भी बचाया जा सकता है.

गर्म मौसम में पशु-पोषण आवश्यकताएँ: गर्म मौसम में पशुओं के रख-रखाव एवं उत्पादन हेतु ऊर्जा की मांग तो अधिक होती है जबकि सकल ऊर्जा की कार्यक्षमता कम हो जाती है. तापमान अधिक होने पर चारे की खपत कम हो जाती है. अतः गर्म मौसम में पशुओं की ऊर्जा आवश्यकता पूर्ण करने हेतु इनको अधिक ऊर्जायुक्त आहार खिलाने की आवश्यकता पड़ती है. गर्मियों में गायों से अधिक दूध प्राप्त करने के लिए उन्हें अधिक वसा-युक्त आहार खिलाए जा सकते हैं. ऐसे आहार खिलाने से इनके शारीरिक तापमान में कोई वृद्धि नहीं होती तथा श्वसन दर भी सामान्य बनी रहती है. अधिक मात्रा में प्रोटीन-युक्त आहार लेने से ऊष्मा का उत्पादन बढ़ जाता है जिसका प्रजनन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है. सामान्यतः गर्म मौसम में दुधारू गायों को अधिक प्रोटीन की आवश्यकता होती है. पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन न मिलने से इनकी शुष्क पदार्थ ग्रहण करने की क्षमता कम हो जाती है. गायों को बाई पास प्रोटीन देने से इसकी उपलब्धता बढ़ सकती है जिससे दूध में वसा की मात्रा एवं दुग्ध-उत्पादन में वृद्धि होती है.

पशुओं को ताप-जनित तनाव से मुक्ति दिलाने के लिए बहुत से अनुसंधान किए जा रहे हैं परन्तु अभी भी दुग्ध उत्पादकता को प्रभावित किए बिना इस समस्या का पूर्ण निदान नहीं हो पाया है. यदि मौसम के दुष्प्रभावों से बचने के साथ साथ पशुओं की खुराक एवं बेहतर रख-रखाव प्रबन्धन पर ध्यान दिया जाए तो इस में आशातीत सफलता भी मिल सकती है. जलवायु तन्यक डेयरी विज्ञान जैसे विषय पर अधिक अनुसन्धान इस दिशा में एक सार्थक पहल हो सकते हैं.