Wednesday, May 28, 2014

तनाव-मुक्त गाय से अधिक दूध पाएं!


डेयरी गायों में दीर्घकालिक तनाव इनके स्वास्थ्य, उत्पादन एवं कल्याण पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है. अतः इन्हें तनाव से बचाने के लिए इनकी समुचित देख-रेख व दूषित पर्यावरण के कारण पड़ने वाले दुष्प्रभावों को न्यूनतम स्तर पर रखना होगा. ऐसा करने के लिए हमें एक गाय की दैनिन्दन जीवन-चर्या पर विशेष ध्यान देना होगा.  यह अवश्य ही विचारणीय है कि डेयरी गायों को पशु-प्रबंधन से जुड़ी विभिन्न गतिविधियां किस प्रकार प्रभावित कर सकती हैं.  गायों की उत्पादन क्षमता को बेहतर बनाने के लिए आवश्यक है कि हम इनके जीवन से तनाव-संबंधी कारकों को यथा-संभव दूर कर सकें.  ऎसी सभी गति-विधियां जो गायों को बदलाव के लिए मजबूर करें तथा इन्हें अनुकूलन की ओर प्रेरित करें,  तनाव के अंतर्गत ही आती हैं.  तनाव मानव एवं गायों दोनों के ही सन्दर्भ में सार्थक प्रतीत होता है. यह भी सत्य है कि यह कई चयापचयी क्रियाओं को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है.
अगर देखा जाए तो तनाव का सम्बन्ध हमारी उन कार्य-प्रणालियों से है जिनकी सहायता से हम विपरीत परिस्थितियों से जूझते हुए स्वयं को बदलने में सक्षम होते हैं.  ये शारीरिक परिवर्तन आतंरिक एवं बाहरी दोनों ही तरह से हो सकते हैं. गाय-प्रबंधन के अंतर्गत अक्सर बाहरी वातावरणीय परिस्थितियों जैसे मौसम परिवर्तनों, टीकाकरण अथवा सींग हटाने के कारण होने वाले तनावों पर तो विचार किया जाता है परन्तु भोजन, पानी, हवा, आवास एवं पशुओं के आराम आदि पर कोई ध्यान ही नहीं दिया जाता, जबकि बेहतर डेयरी प्रबंधन हेतु यह सब सर्वाधिक महत्वपूर्ण होता है.

 1. चारा-चरने का समय 
            पशु दिन-भर में 4-6 घंटे तक तरह-तरह का चारा चरने में व्यतीत करते हैं. गायों को चरने के लिए सारा दिन संतुलित आहार उपलब्ध होना चाहिए.  इन्हें इनकी इच्छानुसार विभिन्न प्रकार के चारे मिश्रण के रूप में भी दिए जा सकते हैं.  गायों को अपनी पसंद के अनुसार चारा हर समय मिलता रहना चाहिए ताकि इनके स्वास्थ्य एवं उत्पादन पर कोई दुष्प्रभाव न पड़े. चारे की पेटिका साफ़-सुथरी होनी चाहिए तथा गायों को चारा चरते समय कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए.  अगर चारा-पेटिका सुलभ एवं आराम-देह होगी तो यह इन्हें अधिक चारा चरने हेतु प्रेरित करेगी.  गायों को चारा परोसने के लिए की गई सम्पूर्ण व्यवस्था इनके आराम को ध्यान में रख कर की जानी चाहिए ताकि इन्हें चरते समय कोई जोखिम या चोट लगने की संभावना न रहे.  गायों को परोसा गया चारा ताज़ा होना चाहिए.  खराब चारा खिलाने से गाय अस्वस्थ एवं तनाव-ग्रस्त हो सकती है. यदि गायों को अपेक्षाकृत कम चारा चरने के लिए लंबी दूरी तक जाना पड़े तो उन्हें पर्याप्त मात्रा में संपूरक आहार भी दिया जा सकता है.
2. स्वच्छ पेय जल उपलब्धता
            दुधारू गायों को पीने के लिए पर्याप्त स्वच्छ जल की आपूर्ति सुनिश्चित करनी चाहिए. सामान्यतः पशु दिन-भर में लगभग आधा घंटा पानी पीने पर खर्च करते हैं.  पीने का साफ़ पानी जीवन का आधार है.  यदि गायों को पर्याप्त पेय-जल आपूर्ति हो तो ये न केवल स्वस्थ रहती हैं अपितु इनकी उत्पादन क्षमता में भी सुधार होता है. पानी का स्त्रोत गायों के यथा-सम्भव निकट ही होना चाहिए ताकि ये जब चाहें,  जितना चाहें, उतना जल अपनी इच्छानुसार ग्रहण कर सकें. पीने का पानी स्वादिष्ट होना चाहिए तथा इसमें किसी प्रकार का खारापन नहीं होना चाहिए.  गाय आमतौर पर अपने शारीरिक तापमान से ठंडा जल ही पीना पसंद करती हैं.  अतः इनका पेय जल आवश्यकता से अधिक ठंडा या गर्म नहीं होना चाहिए. पानी की टंकी की सफाई नियमित रूप से की जानी चाहिए ताकि इसमें किसी प्रकार की ‘काई’ अथवा फफूंद न उग सके.
3. आराम का समय 
            डेयरी गायों से सम्पूर्ण उत्पादक क्षमता प्राप्त करने हेतु यह आवश्यक है कि ये स्वस्थ एवं आराम-दायक परिस्थितियों में निवास करें. इसके लिए हमें दिन-भर गायों के साथ रहने की आवश्यकता पड़ेगी! ऐसा करने से ही इनकी मूलभूत आवश्यकताओं को आसानी से समझा जा सकता है. गायों का सर्वाधिक समय जो 13-14 घंटे तक हो सकता है, वह बैठने या लेटने में ही व्यतीत होता है. शायद यही कारण है कि इनके बैठने के लिए फर्श पर बालू रेत या पुआल का उपयोग किया जाता है ताकि गायों को आराम-देह जगह उपलब्ध हो सके.  गायों को व इनके आवास को साफ़-सुथरा रखने की भी अत्यंत आवश्यकता है अन्यथा गाय रोगी हो सकती हैं.  रोगी गायों से प्राप्त होने वाले दूध की गुणवत्ता एवं मात्रा दोनों ही प्रभावित हो सकती हैं.  गायों के आवास में कीटनाशकों का पर्याप्त छिडकाव करना चाहिए ताकि ये आराम करते समय मक्खियों एवं मच्छरों के कारण परेशान न हों.  इनका स्थान हवादार होना चाहिए.  गायों के आवास में न तो अधिक गरमी हो और न ही सर्दी.  असहनीय ताप व अधिक नमी न केवल इनकी अस्वस्थता का कारण बनती है अपितु इससे उत्पादकता भी कम हो जाती है.
4. दूध निकालते समय
            अधिकतर गायों को दिन में दो बार जबकि कुछ को तीन बार दुहा जा सकता है जो इनकी दुग्ध-उत्पादन क्षमता पर निर्भर करता है.  एक गाय दिन-भर दूध निकलवाते समय लगभग आधा घंटा व्यतीत करती है.  यह प्रक्रिया जितनी महत्वपूर्ण गाय के लिए है उतनी ही आवश्यक डेयरी किसान के लिए भी है. अतः उत्पादन क्षमता बनाए रखने हेतु यह आवश्यक है कि गाय का दूध हर-रोज नियत समय पर ही निकाला जाए ताकि इन्हें इसके कारण कोई तनाव न होने पाए.  ज्ञातव्य है कि स्वस्थ गाय सदा बेहतर गुणवत्ता का ही दूध देती है.  गायों के अयन को दुहने से पूर्व एवं बाद में कीटाणु-नाशक घोल से साफ़ करना चाहिए ताकि इन्हें थनों के माध्यम से कोई संक्रमण न होने पाए.  अयन की अच्छी देख-भाल करने से यह स्वस्थ रहता है तथा थनैला जैसे गंभीर रोगों से बचाव भी संभव हो सकता है.  संक्रमण-रहित दूध में ‘सोमैटिक’ अथवा कायिक-कोशिकाओं का स्तर न्यूनतम रहता है जो स्वास्थ्य की दृष्टि से सर्वोत्तम होता है.  अतः स्वच्छ दुग्ध-उत्पादन हेतु सभी नियमों का पालन करना आवश्यक है ताकि अधिक दुग्ध-उत्पादन करने वाली गायों को संभावित शारीरिक तनाव से दूर रखा जा सके.
5. खुले स्थान पर घुमाना-फिराना
            गायों को हर रोज दो घंटे के लिए खुले में घुमाना-फिराना आवश्यक है. ऐसा करने से इन्हें न केवल पर्याप्त व्यायाम मिलता है, अपितु सामाजिक रूप से ये एक दूसरे के निकट आ सकती हैं.  सब गायों में परस्पर सामाजिक सम्बन्ध स्थापित होता है जो इनके सर्वांगीण विकास हेतु अति-आवश्यक है. ऐसा करने से इन्हें शारीरिक व्यायाम मिलता है तथा खुली हवा में घुमाने से कोई तनाव भी नहीं होता.  बाहर घूमने के दौरान इनके आवास को कीटाणु-नाशकों के उपयोग द्वारा स्वच्छ रखा जा सकता है.  खुले वातावरण में रहने से गायों को बोरियत नहीं होती तथा इनका व्यवहार सामान्य बना रहता है.  ये अनावश्यक रूप से उत्तेजित नहीं होती तथा स्वयं को तनाव-मुक्त भी अनुभव करती हैं. शायद इसीलिए गाँवों में प्रति-दिन गायों को इकट्ठा करके अक्सर बाहर खुली जगह पर भेजा जाता है.
6. पर्यावरणीय परिस्थितियाँ
            गायों के स्वास्थ्य को प्रभावित करने में जितना महत्व केवल तापमान व नमी का है शायद चारा, पानी, आवास एवं जलवायु का मिला-जुला प्रभाव उससे भी अधिक होता है.  इन्हें  ‘थर्मो-न्यूट्रल’ अथवा ताप-उदासीन परिस्थितियों में अधिक आराम अनुभव होता है.  कम उम्र वाली गायों की तुलना में अधिक उम्र की गाय शीघ्रता से नए वातावरण के प्रति अनुकूलित हो जाती हैं.  अधिक गर्मी से बचाव के लिए गायों को पंखें या कूलर उपलब्ध करवाए जा सकते हैं ताकि गर्मी के कारण इन्हें कोई तनाव न हो सके. संकर गऊएँ गर्मी की अपेक्षा सर्दी को आसानी से झेल सकती हैं.  गाय जुगाली करते समय भी काफी मात्रा में उष्मा उत्पन्न करती हैं जो सर्दियों में लाभकारी है परन्तु अधिक गर्मी में यह तनाव का कारण बन सकती है.  आरामदायक वातावरण में रहने वाली गायों की उत्पादकता हमेशा अधिक होती है.
7. न्य तनाव-कारक गतिविधियाँ
            डेयरी फ़ार्म में होने वाले सामान्य क्रिया-कलाप जैसे टीकाकरण, सींग हटाना एवं खुर काटने से भी गायों को तनाव हो सकता है हालाँकि ये सब कार्य उन्नत डेयरी प्रबंधन हेतु अत्यंत आवश्यक होते हैं.  ये सभी क्रियाएँ हर रोज नहीं होती परन्तु दीर्घावधि में गाय न केवल रोग-मुक्त रहती हैं अपितु शारीरिक व मानसिक तनाव से भी बच सकती हैं.  सींग-रहित गाय किसी से लड़ाई नहीं कर सकती जिससे इन्हें चोट लगने की संभावना नहीं रहती. ऐसी गाय डेयरी किसानों के लिए भी वरदान है क्योंकि इसका रख-रखाव सुरक्षित एवं आसान होता है.  गायों के खुर काटने या घिसने से ये आराम से चल-फिर सकती हैं.  इस प्रकार के सभी कार्य प्रशिक्षित व्यक्तियों द्वारा ही किए जाने चाहिएं.  गायों को टीकाकरण, सींग-रहित करते हुए व खुर काटते समय कोई पीड़ा नहीं होनी चाहिए.  इन परिस्थितियों में यथासंभव एंटी-बायोटिक व दर्द-निवारक औषधियों का उपयोग करना चाहिए ताकि इन्हें तनाव से मुक्ति मिल सके.  अगर देखा जाए तो इन सब कारकों से परेशानियों की तुलना में होने वाले लाभ कहीं अधिक हैं.

गायों की बेहतर देखभाल से ही इनके लिए तनाव-मुक्त जीवन सुनिश्चित किया जा सकता है ताकि यह मानवता की सेवा अधिक बेहतर ढंग से करने में सक्षम हो सके.  तो आइए, आज ही से हम अपने गायों को तनाव-मुक्त बनाएं और अधिक उत्पादन पाएं!