प्रसव से तीन सप्ताह पूर्व एवं तीन
सप्ताह बाद का समय संक्रमण-काल कहलाता है. गर्भावधि, दुग्ध उत्पादन एवं प्रसव क्रिया
जैसे सभी कारक मिलकर गाय के चयापचय को प्रभावित करते हैं. संक्रमण काल के दौरान
शरीर में प्रसव एवं दुग्ध-उत्पादन सम्बन्धी कई प्रकार के परिवर्तन होते हैं जो
उत्तकों के निर्माण एवं आहार उपयोगिता को प्रभावित करते हैं. यद्यपि शरीर में
दुग्ध संश्लेषण एवं बच्चे की बढ़त के कारण पोषक तत्वों की माँग बढ़ रही होती है
तथापि अपेक्षाकृत कम आहार ग्राह्यता के कारण गाय कमजोर होने लगती है. राष्ट्रीय
अनुसन्धान परिषद के मानकों के अनुसार सभी पशुओं को एक जैसा आहार देने की संस्तुति
की गई है जो पर्याप्त नहीं है. डेयरी कृषकों द्वारा भी संक्रमण काल में गायों के
आहार पर समुचित ध्यान नहीं दिया जाता है. अतः इस अवधि में पोषक तत्वों की बढ़ती हुई
माँग को देखते हुए गायों को अधिक पोषक तत्व उपलब्ध करवाने की आवश्यकता पड़ती है.
प्रसवोपरांत ऋणात्मक ऊर्जा संतुलन के कारण पाचन नली में भोज्य पदार्थ बहुत धीमी
गति से चलते हैं जिससे रुमेन में किण्वन अधिक होता है. इस अवस्था में वाष्पित होने
वाले वसीय अम्लों की मात्रा अधिक बनने से चयापचय सम्बन्धी विकार जैसे चर्बी-युक्त
जिगर, कीटोसिस, एसिडोसिस तथा खनिजोन का संतुलन बिगड़ने से दुग्ध-ज्वर, एडीमा व अधिक
केल्शियम के कारण होने वाली गंभीर समस्याएँ आ सकती हैं. ऐसे पशुओं में जेर न
गिराना, गर्भाश्य की सूजन तथा थनैला रोग होने की संभावना भी अधिक प्रबल होती है.
अतः दुग्ध-संश्लेषण के कारण होने वाले तनाव से मुक्त होने के लिए प्रसवोपरांत पशुओं
के पोषण पर विशेष ध्यान देना अनिवार्य है.
प्रसव से पहले एवं
दुग्धकाल आरम्भ होने तक रक्त में इंसुलिन तो कम परन्तु ग्रोथ हार्मोन की मात्रा
अधिक होने लगती है. इसी प्रकार शरीर में थाइरोक्सीन, इस्ट्रोजन, ग्लुकोकोर्टिकोयड
तथा प्रोलेक्टिन हार्मोनों में भी बदलाव आते हैं जो प्रसवोपरांत धीरे-धीरे सामान्य
अवस्था में आने लगते हैं. इन परिवर्तनों के कारण पशु को भूख कम लगती है तथा इनकी
खुराक ग्राह्यता बहुत कम हो जाती है. ऐसा होने पर पशु अपने शरीर में जमा की गई वसा
रूपी ऊर्जा व जिगर में संग्रहीत ग्लाइकोजन का उपयोग करने लगता है. इसका पशुओं के स्वास्थ्य
पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. ज्ञातव्य है कि रक्त में इस्ट्रोजन तथा प्रोजेस्टीरोन
के अनुपात में परिवर्तन होने से पशु की शुष्क पदार्थ ग्राह्यता कम हो जाती है.
प्रसव से पहले के
संक्रमण-काल में रक्त-शर्करा लगभग सामान्य रहती है जो प्रसव के समय तीव्रता से
बढ़ती है तथा प्रसवोपरांत पुनः धीरे-धीरे कम होने लगती है. ऐसा अधिक मात्रा में
ग्लुकागोन व ग्लुकोकोर्टिकोयड हार्मोनों के कारण जिगर में ग्लाइकोजन के अपघटन से
होता है. यद्यपि स्तन ऊत्तकों को लेक्टोज संश्लेषण हेतु ग्लूकोज की आवश्यकता
प्रसवोपरांत भी रहती है फिर भी जिगर में ग्लाइकोजन की उतनी अधिक क्षति नहीं
होती. यह दुग्ध-उत्पादन हेतु अन्य
गैर-ग्लाइकोजन स्रोतों से ग्लूकोज संश्लेषित होने के कारण सम्भव होता है. स्पष्ट
है कि चयापचय सम्बन्धी संक्रमण-काल की सभी बड़ी घटनाएं प्रसवोपरांत ही होती हैं.
यदि इस समय जिगर में ट्राइग्लिसराइड की मात्रा बढ़ जाए तथा ग्लाइकोजन कम हो जाए तो
गायों में ‘कीटोसिस’ जैसे चयापचय सम्बन्धी विकार की स्थिति बन जाती है. अतः संक्रमण-काल के दौरान होने वाले तनाव को कम
करने के लिए गायों को पहले से ही संतुलित आहार दिया जाना चाहिए. इस अवधि में अधिक ऊर्जा ग्राह्यता सुनिश्चित
करने के साथ-साथ सुरक्षित वसा व जिगर में ग्लाइकोजन की क्षति को न्यूनतम रखना
होगा. ग्याभिन पशु में बछड़े की बढ़त एवं विकास को देखते हुए इसे अतिरिक्त ऊर्जा की
आवश्यकता पड़ती है परन्तु राष्ट्रीय अनुसन्धान परिषद के अनुसार सभी पशुओं को एक
जैसी खुराक देने की ही सिफारिश की गई है. इन परिस्थितियों के चलते पशु ऋणात्मक
ऊर्जा संतुलन की स्थिति में आ जाते हैं जिससे पशु को प्रसवोपरांत चयापचय सम्बन्धी
गंभीर विकारों का सामना करना पड़ता है. अतः ऐसी स्थिति से निजात पाने के लिए गाय को
1.5 किलोग्राम प्रतिदिन की दर से अतिरिक्त दाना खिलाया जाना चाहिए.
पशु पोषण सम्बन्धी
अनुसन्धान से ज्ञात हुआ है कि गर्भावधि के दौरान राष्ट्रीय अनुसन्धान परिषद द्वारा
की गई रुक्ष प्रोटीन अनुशंशा भी पर्याप्त नहीं है. प्रसव से पूर्व यदि रुक्ष
प्रोटीन प्रचुर मात्रा में न दिया जाए तो पशु ऋणात्मक नाइट्रोजन संतुलन की अवस्था
में आ सकते हैं. यदि पशुओं को इस अनुशंशा से अधिक पोषक आहार उपलब्ध करवाए जाएं तो
इन्हें प्रसव के समय कोई कठिनाई नहीं होती. अतः प्रसव से पहले पशुओं में ऐसे
कारकों की पहचान करना आवश्यक है जिनके कारण पोषण ग्राह्यता कम होती है. अध्ययनों
से ज्ञात हुआ है कि अधिक मोटी या चर्बी चढ़ी गायों को प्रसवोपरांत अपेक्षाकृत कम
भूख लगती है. ऐसी गायों में स्वास्थ्य-सम्बन्धी समस्याएँ भी अधिक पाई गई हैं. चारे
तथा दाने का अनुपात बढ़ाने से प्रसव पूर्व इनकी खुराक बढ़ाई जा सकती है. ऐसा करने से
प्रसव पूर्व ही रुमेन में प्रोपियोनेट अम्ल का उत्पादन बढ़ने लगता है. पशुओं की
खुराक में रेशा-युक्त पदार्थ अधिक होने से रुमेन में अम्ल अवशोषित करने वाले
ऊत्तकों का विकास तीव्रता से होता है. ये ऊत्तक वाष्पित होने वाले वसीय अम्लों को
शीघ्र ही अवशोषित कर लेते हैं. ऐसा होने से रुमेन की अम्लता बढ़ नहीं पाती तथा अधिक
दाना खाने से एसिडोसिस की स्थिति भी टल जाती है. अतः प्रसवोपरांत अधिक लाभ हेतु
गायों को प्रसव से पूर्व ही दाना खिलाया जा सकता है. इन परिस्थितियों में जिगर
द्वारा अधिक मात्रा में ग्लूकोज संश्लेषण होने लगता है तथा ग्लाइकोजन की क्षति
होने से बच जाती है. प्रोपियोनेट तथा
ग्लूकोज दोनों ही प्रसव के समय इंसुलिन की मात्रा बढ़ा कर चर्बी व ग्लाइकोजन के
क्षय को रोकते हैं. इस प्रकार कीटोसिस जैसे विकार होने की संभावना भी कम हो जाती
है.
हालांकि दुग्ध-काल के
आरम्भ में संपूरक वसा खिलाने से शारीरिक भार में कमी पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता फिर
भी इसके कारण चर्बी से मिलने वाले गैर-एस्टरीकृत वसीय अम्लों की मात्रा बढ़ जाती
है. यह वसा विघटन या वसीय अम्लों के पुनः
एस्टरीकरण के कारण हो सकता है. वसा खिलाने
से गायों के भार में वृद्धि होती है तथा ये धनात्मक ऊर्जा संतुलन की स्थिति में
पहुँच जाती हैं. आरम्भ में इन गायों में कम पोषण ग्राह्यता के कारण वसा खिलाने का
कोई विशेष प्रभाव देखने को नहीं मिलता. इसी प्रकार प्रसवोपरांत भी अधिक वसा खिलाने
से कोई लाभ नहीं होता क्योंकि उस समय गाय ऋणात्मक ऊर्जा संतुलन की स्थिति में होती
हैं.
संक्रमण-काल में कम प्रोटीन-युक्त
आहार देने से गाय के संग्रहीत ऊर्जा भंडारों का क्षय होता है तथा जनन,
दुग्ध-काल एवं स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव
पड़ता है. प्रचुर मात्रा में प्रोटीन खिलाने से अन्तःस्त्रावी शारीरिक क्रियाएँ
सामान्य होती हैं तथा दुग्धावस्था में सुधार होता है. प्रायः देखा गया है कि दूध न
देने वाली गायों की पोषण आवश्यकताओं पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया जाता है. अतः यह आवश्यक है कि ब्याने से पूर्व संक्रमण-काल
के दौरान गाय की आहार आवश्यकताओं का निर्धारण किया जाए ताकि उस समय गर्भ में पल
रहे बछड़े को पर्याप्त मात्रा में पोषण मिल सके. गायों की शुष्क पदार्थ ग्राह्यता
एवं प्रोटीन की मात्रा बढ़ा कर जनन क्रिया, दुग्धावस्था व स्वास्थ्य में अधिकाधिक
सुधार लाया जा सकता है. प्रसव पूर्व शुष्क पदार्थों का पोषण घनत्व तथा ग्राह्यता
बढ़ा कर भी प्रसवोपरांत इनकी खुराक को बढ़ाया जा सकता है. गायों की खुराक में
पर्याप्त विटामिन-युक्त खनिज मिश्रण भी मिलाना चाहिए ताकि उन्हें कोई खनिज अल्पता
सम्बन्धी विकार न हो सकें.
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