विश्वभर में
उत्पादित होने वाले आहार का लगभग एक तिहाई भाग व्यर्थ में ही नष्ट हो जाता है.
मिट्टी में मिलकर बचा-खुचा भोजन मीथेन गैस पैदा करता है जो वैश्विक ताप-वृद्धि के
लिए जिम्मेवार है. आहार का उत्पादन करने के लिए जल, ऊर्जा एवं भूमि जैसे अमूल्य
संसाधनों की आवश्यकता होती है, जो आहार के नष्ट होने पर व्यर्थ हो जाते हैं. स्टॉकहोम
अंतर्राष्ट्रीय जल संस्थान के अनुसार मनुष्य द्वारा उपयोग में लाए गए जल का लगभग
एक चौथाई भाग ऐसे आहार उत्पादन पर व्यय हो जाता है, जिसे कोई भी नहीं खा पाता है. हमारे
देश में पशु आहार की उपलब्धता पर्याप्त नहीं है, परन्तु फिर भी हर वर्ष लाखों टन
बचा-खुचा भोजन व्यर्थ में नष्ट हो जाता है. पशुओं के आहार में ऊर्जा एवं पोषण का
महत्व सर्वाधिक होता है. अतः उपभोक्ताओं द्वारा व्यर्थ में छोड़ा गया भोजन जैसे फल
व सब्जियों के छिलके, फलों का गूदा, बेकरी व रसोईघर
के अपशिष्ट पदार्थ आदि पशुओं को संपूरक आहार के रूप में खिलाए जा सकते हैं. ग्रामीण
क्षेत्रों के डेयरी किसान अपने घर में बची हुई रोटियां अक्सर अपने पशुओं को खिलाते
रहते हैं, जिसमें कोई हर्ज नहीं है. ऐसे आहार में पोषण की मात्रा बहुत कम या अधिक
हो सकती है परन्तु इसके अंतर्गत पशुओं को मांस अथवा गला-सड़ा आहार कभी नहीं खिलाना
चाहिए.
बचा-खुचा भोजन सुखा कर एवं पुनः-चक्रित करके पशुओं के
लिए अतिरिक्त आहार जुटाया जा सकता है. शहरी इलाकों में जहां भोजन की बर्बादी
सर्वाधिक होती हैं वहीं ग्रामीण क्षेत्र के पशु कुपोषण का शिकार हो रहे होते हैं.
व्यर्थ छोड़ा गया भोजन पुनः चक्रित करने से न केवल पशुओं के लिए अतिरिक्त राशन जुटाता
है बल्कि इससे पशुपालन के व्यवसाय को और भी अधिक चिरस्थायी बनाने में सहायता मिलती
है. ज्ञातव्य है कि पशुधन हेतु कड़े जैव-सुरक्षा संबंधी प्रावधानों के कारण पशुओं
को बचा-खुचा भोजन नहीं खिलाया जा सकता. जैव-सुरक्षा संबंधी नियम पर्यावरण, लोक
स्वास्थ्य एवं राष्ट्र की आर्थिक हानि को नियंत्रित करने के लिए बनाए गए हैं. अतः
पशुओं को खिलाने से पहले रेस्तरां व रसोई-घरों में बचे-खुचे भोजन को जीवाणु रहित अवश्य
करें ताकि कोई रोग आदि न फ़ैल सके. पशुओं को इस प्रकार के व्यर्थ आहार खिलाने के
लिए निम्न-लिखित बातों पर ध्यान देना आवश्यक है-
·
पोषण
हेतु खिलाए जाने वाले आहार का रासायनिक विश्लेषण करना चाहिए ताकि अल्प-मात्रिक
पोषक तत्वों की कमी को संपूरक आहार द्वारा पूरा किया जा सके.
·
भीगे
हुए व्यर्थ भोजन में दाना, खनिज मिश्रण व विटामिन मिला कर पोषण हेतु अधिक उपयोगी
बनाया जा सकता है.
·
पशुओं
को केवल बचे-खुचे भोजन पर आश्रित रखना हानिकारक है, हालांकि ऐसा आहार उन्हें
नियमित चारे के साथ खिलाया जा सकता है.
·
कम
शुष्क पदार्थ युक्त बचा-खुचा आहार पशुओं के लिए अधिक उपयुक्त नहीं है क्योंकि
इसमें पोषण की मात्रा भी कम होती है. यदि भोजन बासी होने के कारण प्रदूषित हो गया
है तो इसे पशुओं को नहीं खिलाना चाहिए.
·
मांस
एवं अंडे के छिलकों से मिश्रित बचा-खुचा भोजन पशुओं के लिए अनुकूल नहीं है, अतः
इसे खिलाना वर्जित है.
·
किसानों
द्वारा खेतों में छोड़ी गई सब्जियां, फसल अवशेष एवं फलों को बीन कर इकट्ठा करना
चाहिए ताकि इन्हें पशुओं के लिए उपयोग में लाया जा सके. ध्यातव्य है कि मजदूरी
अधिक होने के कारण किसान बहुत-से खाद्य फसल-अवशेष खेतों में ही छोड़ देते हैं.
यूरोप
एवं ऑस्ट्रेलिया के क़ानून के अनुसार पशु पदार्थ युक्त जैसे पोल्ट्री फीड, मांस,
मछली के आहार रोमंथी पशुओं को नहीं खिलाए जा सकते. इस तरह के प्रतिबन्ध, आहार
द्वारा फैलने वाले रोगों को नियंत्रित करने के लिए ही लगाए गए हैं. कुछ देशों में
पशुओं की उन्नत नस्लों को खिलाने के लिए वाणिज्यिक आहार अथवा फीड का चलन बढ़ने से
डेयरी किसान बचा-खुचा भोजन उपयोग में नहीं लाते हैं. मानव जीवन पद्धति में हो रहे
नए परिवर्तनों के कारण भी बचे-खुचे भोजन की गुणवत्ता प्रभावित हुई है. कई देशों
में फैक्ट्री में तैयार किया गया फीड सस्ता व अधिक लाभदायक होने के कारण अधिक चलन
में आ रहा है. फ़ूड फैक्ट्रियों अथवा आहार उद्योगों से निकलने वाले खाद्य-अवशेषों
को आजकल पूर्ण मिश्रित राशन बनाने के लिए उपयोग में लाया जाता है. अपेक्षाकृत कम
गुणवत्ता वाले व्यर्थ खाद्य-अवशेषों को मिट्टी में दबा कर नष्ट कर दिया जाता है. आहार
उद्योग से प्राप्त कुछ उपोत्पाद सुखा कर सान्द्र अथवा सम्पूर्ण मिश्रित भोजन के
रूप में प्रयुक्त किए जा सकते हैं.
कुछ देशों में व्यर्थ बचे हुए आहार को इकट्ठा करके
प्रसंस्करण हेतु फैक्ट्रियों में भेजा जाता है जहां इसे सुखा कर पीस लिया जाता है.
इस प्रकार पिसे हुए आहार को पूर्ण मिश्रित राशन के निर्माण हेतु उपयोग में लाया
जाता है, परन्तु प्रसंस्करण से पहले ऐसे आहार की गुणवत्ता जांच अवश्य ही पूर्ण कर
लेनी चाहिए. यदि आहार उद्योग के उपोत्पाद डेयरी फ़ार्म के निकट ही उपलब्ध हों तो
इन्हें सीधा ही पशुओं को खिलाया जा सकता है. ये ठोस या तरल दोनों ही अवस्था में
खिलाए जा सकते हैं.
यदि
आहार खाद्य गुणवत्ता की कसौटी पर खरा न उतरे तो इसे कम्पोस्ट खाद बनाने के लिए
उपयोग में लाया जा सकता है. कम्पोस्ट खाद बनाने से व्यर्थ हुए भोजन का फैलाव लगभग
पचास प्रतिशत तक कम हो जाता है. कम्पोस्ट बनाने की प्रक्रिया तो सुरक्षित है परन्तु
इससे पैदा होने वाली मीथेन एक असरकारक ग्रीन हाउस गैस है, जो वैश्विक ताप-वृद्धि
हेतु उत्तरदायी है. गले-सड़े आहार अथवा भोजन को छोटे आकार के डाइजेस्टर में डाल कर
गैर-परम्परागत विद्युत ऊर्जा भी उत्पादित की जा सकती है. एक अनुमान के अनुसार अगर
अमेरिका के केवल 50% व्यर्थ भोजन को ऑक्सीजन
की अनुपस्थिति में किण्वित करके विद्युत ऊर्जा बनाई जाए तो यह 25 लाख घरों में
वार्षिक आपूर्ति हेतु पर्याप्त हो सकती है.