ओर्गैनिक डेयरी एक तरह की समग्र फार्मिंग पद्धति है
जो भारतवर्ष में अभी हाल ही में प्रारम्भ हुई है. हालांकि हमारे डेयरी किसानों
द्वारा अपनाई जा रही परम्परागत पशु-पालन पद्धति ओर्गैनिक डेयरी फार्मिंग से अधिक
भिन्न नहीं है जिसमें दुधारू पशुओं को सामान्यतः रसायनों, अंग्रेजी दवाओं एवं हार्मोनों के
दुष्प्रभाव से दूर रखा जाता है. ओर्गैनिक से तात्पर्य है कि ऐसा प्रमाणित किया गया
दूध जिसके उत्पादन में कोई रसायन, एन्टीबायोटिक अथवा कृत्रिम
हार्मोनों का उपयोग न हुआ हो अर्थात जो चारा दुधारू गायों को खिलाया जाता है उसमें
कीटनाशक एवं रसायन नहीं होने चाहिएं. ओर्गैनिक दूध में संतृप्त वसा की मात्रा
अपेक्षाकृत कम होती है. यह दूध पर्यावरण के लिए भी सुरक्षित होता है क्योंकि लोग
इसके उत्पादन हेतु रासायनिक खादों का उपयोग नहीं करते. कुछ डेयरी किसान हार्मोन के
टीके लगा कर गायों की दुग्ध-उत्पादन क्षमता बढाते हैं जो ओर्गेनिक दुग्ध-उत्पादन
हेतु पूर्णतः वर्जित है. यद्यपि इन हार्मोनों के कथित दुष्प्रभाव अभी मालूम नहीं
हैं तथापि लोग इनसे हर हाल में बचना ही चाहते हैं. कई डेयरियों में दुग्ध-उत्पादन
बढ़ाने के लिए विभिन्न प्रकार के रसायनों का भी उपयोग होता है जबकि ओर्गेनिक दूध की
डेयरी में यह प्रतिबन्धित है.
आजकल शहरों में दुग्ध-उत्पादन हेतु डेयरी गायों को
बहुत ही कम स्थान पर रखा जाता है जहां इन्हें स्वतन्त्रतापूर्वक हिलने-डुलने में
कठिनाई होती है. दुग्ध-उत्पादन एक औद्योगिक इकाई की तरह किया जाता है जो सर्वथा
अनुचित है. ये आधुनिक डेयरियां पशु कल्याण हेतु स्थापित अंतर्राष्ट्रीय मापदंडों
के अनुकूल भी नहीं है. ओर्गैनिक दुग्ध-उत्पादन में पशुओं को चरागाह से घास चरने की
पूर्ण स्वतन्त्रता होती है. यह सच है कि ओर्गेनिक दूध देने वाली गायों को
एंटीबायोटिक दवाइयाँ नहीं दी जाती,
परन्तु इसमें किसी को आपत्ति नहीं हो सकती क्योंकि स्वस्थ चरागाह में रहने वाली
गायें अक्सर बीमार नहीं होती तथा न ही इन्हें ऎसी दवाओं की आवश्यकता पड़ती है. यदि
फिर भी आवश्यक हो तो इन गायों का उपचार होम्योपैथिक अथवा आयुर्वैदिक दवाओं द्वारा
किया जा सकता है ताकि इनके दूध की गुणवत्ता अप्रभावित रहे. ओर्गैनिक डेयरी
फार्मिंग में पर्यावरण का समुचित ध्यान रखा जाता है. पशुओं के मल-मूत्र से मिलने
वाली खाद को ही हरा चारा उगाने हेतु उपयोग में लाया जाता है ताकि पोषक तत्व पौधों
एवं पशुओं के बीच पुनःचक्रित होते रहें.
ओर्गैनिक दूध उत्पादित करना कुछ महँगा अवश्य है क्योंकि
प्रत्येक गाय हेतु अधिक चरागाह भूमि की आवश्यकता पड़ती है. गायों को चारे में
फलीदार पौधों का चारा अधिक मिलता है जिससे इनमें धनात्मक नाइट्रोजन संतुलन की
स्थिती बनी रहती है. गायों से ओर्गेनिक दूध प्राप्त करने हेतु इन्हें साल भर तक
रासायनिक खाद एवं कीटनाशक-रहित घास ही खिलाई जाती है तथा इन्हें हार्मोनों एवं
अंग्रेजी दवाओं से दूर रखा जाता है.
आधुनिक डेयरी फ़ार्म की तुलना में यहाँ पशुओं की संख्या कम होती है ताकि
इन्हें अधिक भीड़ के कारण किसी प्रकार का तनाव न झेलना पड़े. शायद यही कारण है कि इन
गायों के लिए अपेक्षाकृत अधिक संसाधन जुटाने पड़ते हैं. इनका सकल प्रबंधन बेहतर
होने के कारण दूध में कायिक कोशिकाओं की संख्या भी कम होती है. सामान्य की तुलना
में ओर्गैनिक दूध देने वाली गायें ताज़ी घास खा कर दो से तीन गुना अधिक
एटीओक्सिडेंट-युक्त दूध देती हैं. इसमें अधिक मात्रा में मिलने वाला युग्मिक
लिनोलीक अम्ल हमारे शरीर की चयापचय दर को बढाता है. इससे रोग-प्रतिरोध क्षमता बढ़ती
है तथा माँसपेशियाँ विकसित होती हैं. यह कोलेस्टेरोल एवं एलर्जी को भी नियंत्रित
करता है. मानव शरीर युग्मिक लिनोलीक अम्ल संश्लेषित करने में सक्षम नहीं है, अतः हमें यह पदार्थ ओर्गेनिक दूध द्वारा आसानी से प्राप्त हो सकता है. जो
गाय चरागाहों में चरती हैं, उनके दूध में 500% अधिक युग्मिक
लिनोलीक अम्ल मिलता है. युग्मिक लिनोलीक अम्ल कैंसर के उपचार में भी बहुत लाभकारी
पाया गया है.
यू.के. में हुए एक
अनुसन्धान से ज्ञात हुआ है कि इनके दूध में ओमेगा-3 जैसे लाभदायक वसीय अम्ल अधिक
मात्रा में होते हैं. एक अन्य यूरोपीयन अनुसन्धान द्वारा ज्ञात हुआ है कि जिन
माताओं ने ओर्गैनिक दूध का उपभोग किया, उनके
दूध में 50% अधिक युग्मिक लिनोलीक एसिड पाया गया. इसी प्रकार अन्य कई अध्ययनों से
स्पष्ट हुआ है कि सामान्य दूध की अपेक्षा ओर्गैनिक दूध में पोषक तत्वों की मात्रा
अधिक होती है, परन्तु इस दिशा में अभी और अधिक अनुसंधान करने
की आवश्यकता है. ओर्गैनिक दूध पीने से ह्रदय रोग होने की संभावना कम हो जाती है.
अमेरिका में ओर्गैनिक दूध के प्रमाणन हेतु यह आवश्यक है कि गाय चरागाह में ऎसी घास
खाए जिसमें ओमेगा-3 जैसे वसीय अम्लों की मात्रा अधिक हो. ज्ञातव्य है कि वहाँ गाय
अक्सर मक्का का आहार खाती है जिसमें ओमेगा-6 वसीय अम्ल अधिक होते हैं. हालांकि
ओर्गैनिक तथा गैर- ओर्गैनिक दूध में वसा की मात्रा तो लगभग एक जैसी होती है परन्तु
ओर्गैनिक दूध में ओमेगा-3 वसीय अम्लों की मात्रा लगभग 60% अधिक तथा ओमेगा-6 वसीय
अम्लों की मात्रा 25% कम होती है. ओर्गैनिक दूध में ओमेगा-6: ओमेगा-3 का अनुपात
2.28 पाया गया जो सामान्य दूध के 5.77 से बहुत कम है. अधिकतर विशेषज्ञ इस बात से
सहमत हैं कि ओमेगा-3 वसीय अम्ल स्वास्थ्य हेतु लाभकारी हैं परन्तु वे आहार में
ओमेगा-6 वसीय अम्लों की मात्रा कम करने के पक्ष में भी नहीं हैं. कुछ वैज्ञानिकों
का यह भी मत है कि अच्छे स्वास्थ्य हेतु दोनों ही प्रकार के ओमेगा अम्ल लाभदायक
हैं. अनुसन्धान से ज्ञात हुआ है कि चरागाह में फलीदार पौधों एवं घास चरने वाली
गायों के दूध में वसीय अम्लों का स्तर बेहतर होता है.
डेनमार्क कृषि
विज्ञान संस्थान द्वारा किए गए अनुसन्धान से ज्ञात हुआ है कि ओर्गेनिक दूध में
विटामिन ‘ए’ तथा ‘इ’ की मात्रा भी अपेक्षाकृत अधिक होती है. ये गायें
चरागाह की ताजी घास पर चरती हैं जिससे इनके दूध में 50% अधिक विटामिन ई तथा 75%
अधिक बीटा कैरोटीन मिलती है. बीटा कैरोटीन शरीर में जा कर विटामिन ए के रूप में
परिवर्तित हो जाती है. इससे हमारी दृष्टि बढ़ती है तथा यह विटामिन रोग-प्रतिरोध
क्षमता भी बढाता है. यह हड्डियों के विकास, जीन प्रकटीकरण
तथा जनन-तंत्र हेतु भी लाभदायक है.
विटामिन ई हमारे शरीर को बूढा होने से बचाता है. यह कई दीर्घकालिक रोगों
जैसे ह्रदय-रोग, मधु-मेह तथा मोतिया-बिंद आदि के होने की
संभावना कम करता है. एक स्वस्थ मनुष्य को प्रतिदिन 15 मिलीग्राम विटामिन ‘ई’ की आवश्यकता होती है जिसकी कमी ओर्गेनिक दूध
द्वारा आसानी से पूरी की जा सकती है.
प्रमाणीकृत
ओर्गेनिक दूध के अनेकों लाभ हैं परन्तु इसका उत्पादन महँगा होने के कारण यह अधिक
लोकप्रिय नहीं हो पाया है. भारत के अधिकतर किसान पशुओं के पालन-पोषण पर अधिक धन
व्यय नहीं करना चाहते, जो
इसके उत्पादन में एक बड़ी बाधा है. किसानों का अनपढ़ होना भी एक समस्या है क्योंकि
वे पशुओं से सम्बंधित किसी भी जानकारी का कोई लेखा-जोखा संभाल कर नहीं रखते.
अधिकतर किसान दुग्ध-उत्पादन तो बढ़ाना चाहते हैं परन्तु दूध की गुणवत्ता सुधारने
में कोई रूचि नहीं लेते. देश में सामान्य दूध की कमी होना भी ओर्गेनिक
दुग्ध-उत्पादन हेतु बाधक है. सरकार कृत्रिम गर्भाधान द्वारा संकर नस्लों के
उत्पादन पर अधिक जोर दे रही है जो ओर्गेनिक डेयरी फार्मिंग की मुख्य भावना के
विपरीत है. कई स्थानों पर अच्छी गुणवत्ता के चारे एवं पेय जल की कमी भी एक बड़ी
अड़चन है. हमारे देश में ओर्गेनिक दूध का प्रमाणन महँगा होना भी एक बड़ी समस्या है
क्योंकि इसके लिए आवश्यक मापदंडों में एक-रूपता का अभाव है. ध्यातव्य है कि अधिकतर
डेयरी किसानों को ओर्गेनिक डेयरी फार्मिंग के बारे में आवश्यक जानकारी भी नहीं है.
जो लोग ओर्गेनिक दूध के उत्पादन
में लगे हैं, उन्हें इसके विपणन में कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है. हमारे देश में
अधिकतर दूध का उत्पादन छोटी डेयरियों में होने के कारण संसाधनों की कमी रहती है जो
ओर्गेनिक दूध उत्पादन बढ़ाने में एक बड़ी बाधा हो सकती है. आजकल ओर्गैनिक दूध का
वैश्विक कारोबार अत्यंत तीव्रता से बढ़ रहा है क्योंकि इसे परम्परागत दूध से अधिक
स्वास्थ्यवर्धक माना जाता है. अमेरिका में बिकने वाले दूध का केवल तीन प्रतिशत भाग
ही ओर्गैनिक दूध के रूप में होता है जबकि भारत में तो इसका चलन अभी आरंभिक स्थिती
में ही है. यदि ओर्गेनिक डेयरी फार्मिंग से होने वाले सभी लाभों की जानकारी डेयरी
किसानों तक पहुँचाई जाए तो हमारे देश में भी यह दूध अधिक लोकप्रिय हो सकता है.